मैं पास तुम्हारे आ न सका,
तुम दूर न मुझसे हो पाईं।
कुछ मेरी भी मजबूरी थी
जो तुमको समझ नहीं आई।
आँखों में आँसू आ न सके
पर मन ने दुख-कविता गाई।।
सावन ने भी अंगार दिये,
कब जल की बूँदें बरसाईं।
जी भर कर यदि मैं रो पाता
गर तुम थोड़ा मुस्का पाते।
नयनों से अगर नयन मिलते
शायद हम तब कुछ कह जाते।।
जिनको मैंने अपना समझा,
हरजाई निकलीं, दुख लाईं।
मैंने कुछ स्वप्न-राग गाये
तुमने भी कुछ गाया होगा।
सपने साकार हुए कुछ हैं
तुमने भी कुछ पाया होगा।।
कुछ रहीं अधूरी, कुछ पूरी,
जितनी हमने कसमें खाईं।